સંસ્કૃત

 Sanskrit Education:

एतदपि जानीत---

                 

  🔹वाहनों का संस्कृत में नाम 🔹


🚔गाड़ी                      शकटः , शकटिका 


🚲साइकिल                 द्विचक्रिका 


✈️हवाई जहाज.       वायुयानम् /विमानम् 


🛳जहाज                    पोतः , जलयानम्


🔹मिष्टान्नानां नामानि🔹


मोदकः.                     लड्ङू 


रसगोलकम्                रसगुल्ला

 

दुग्धपूपिका                गुलाब जामुन 


पिण्डः                       पेडा


चक्रिका                     बर्फी


संयावकम्                 गुझिया


कौष्माण्डकम्            पेठे की मिठाई


मधुमष्ठः                     बालूशाही


कुर्चिका                     रबडी


मिष्टपाकः                  मुरब्बा


एतदपि जानीत----👇 


       🔹जलाशयानां नामानि🔹


सिन्धुः             =              समुद्र


नदी                 =             नदी


अल्पसरम्         =            तलैया


तडाग:               =           तालाब


कुसरित              =          छोटी नदी 


कूप:                   =          कुँआ 


कुल्या                 =          नहर 


निर्झरः                  =         झरना


पल्लवलम्            =          पोखरा


कासार:                =          झील


❇️ बन्धुबान्चवानां नामानि ❇️----


♦️पितामहः = दादा,


♦️पितामही = दादी,


♦️पितृव्या = चाची,


♦️पितृव्यः = चाचा,


♦️भगिनी = बहन,


♦️अनुजः = छोटा भाई


♦️अग्रजा =बडी बहन


♦️सहोदरा = सगी बहन,


♦️सहोदरः = सगा भाई,


♦️जनकः = पिता,


♦️जननी = माता,


♦️मातुलः = मामा,


♦️मातुली = मामी,


♦️आतजाया = भाभी,


♦️भ्रातृज: = भतीजा,


♦️भागिनेयः = भानजा/भगिना


♦️ननान्दा = ननद,


♦️आवुत्तः = बहनोई,


♦️पुत्र:/तनयः = बेटा,


♦️अग्रजः = बड़ा भाई,


♦️अनुजा = छोटी बहन,


♦️भ्रातृजा= भतीजी,


♦️पितृस्वसा = बुआ,


♦️मातामहः = नाना।

••• 2 •••

*संस्कृत की अद्भुत विशेषताएँ* 

जो किन्हीं अन्य भाषाओं में नहीं हैं।


१- *अनुस्वार*- अं और विसर्ग अ: 


संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण और लाभदायक विशेषता हैं- अनुस्वार और विसर्ग।


पुल्लिंग के अधिकांश शब्द विसर्गान्त होते हैं —


यथा- राम: बालक: हरि: भानु: आदि। और


नपुंसक लिंग के अधिकांश शब्द अनुस्वारान्त होते हैं—


यथा- जलं वनं फलं पुष्पं आदि।


अब जरा ध्यान से देखें तो पता चलेगा कि विसर्ग का उच्चारण और कपालभाति प्राणायाम दोनों में श्वास को बाहर फेंका जाता है। अर्थात् जितनी बार विसर्ग का उच्चारण करेंगे उतनी बार कपालभाति प्रणायाम अनायास ही हो जाता है। *जो लाभ कपालभाति प्रणायाम से होते हैं, वे केवल संस्कृत के विसर्ग उच्चारण से प्राप्त हो जाते हैं*।


उसी प्रकार अनुस्वार का उच्चारण और भ्रामरी प्राणायाम एक ही क्रिया है । भ्रामरी प्राणायाम में श्वास को नासिका के द्वारा छोड़ते हुए भौंरे की तरह गुंजन करना होता है, और अनुस्वार के उच्चारण में भी यही क्रिया होती है। *अत: जितनी बार अनुस्वार का उच्चारण होगा , उतनी बार भ्रामरी प्राणायाम स्वत: हो जावेगा*।


कपालभाति और भ्रामरी प्राणायामों से क्या लाभ है? यह बताने की आवश्यकता नहीं है; क्योंकि गुरु जी जैसे संतों ने सिद्ध करके सभी को बता दिया है। मैं तो केवल यह बताना चाहता हूँ कि संस्कृत बोलने मात्र से उक्त प्राणायाम अपने आप होते रहते हैं।


जैसे हिन्दी का एक वाक्य लें- '' राम फल खाता है``


इसको संस्कृत में बोला जायेगा- '' राम: फलं खादति"


राम फल खाता है ,यह कहने से काम तो चल जायेगा ,किन्तु राम: फलं खादति कहने से अनुस्वार और विसर्ग रूपी दो प्राणायाम हो रहे हैं। यही संस्कृत भाषा का रहस्य है।


संस्कृत भाषा में एक भी वाक्य ऐसा नहीं होता जिसमें अनुस्वार और विसर्ग न हों। अत: कहा जा सकता है कि *संस्कृत बोलना अर्थात् चलते फिरते योग साधना करना*।


२- *शब्द-रूप* :-


संस्कृत की दूसरी विशेषता है शब्द रूप। विश्व की सभी भाषाओं में एक शब्द का एक ही रूप होता है,जबकि संस्कृत में प्रत्येक शब्द के 25 रूप होते हैं। जैसे राम शब्द के निम्नानुसार २५ रूप बनते हैं।

यथा:- रम् (मूल धातु)

राम: रामौ रामा:

रामं रामौ रामान्

रामेण रामाभ्यां रामै:

रामाय रामाभ्यां रामेभ्य:

रामत् रामाभ्यां रामेभ्य:

रामस्य रामयो: रामाणां

रामे रामयो: रामेषु

हे राम! हेरामौ! हे रामा:!


ये २५ रूप सांख्य दर्शन के २५ तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं। जिस प्रकार पच्चीस तत्वों के ज्ञान से समस्त सृष्टि का ज्ञान प्राप्त हो जाता है, वैसे ही संस्कृत के पच्चीस रूपों का प्रयोग करने से आत्म साक्षात्कार हो जाता है। और इन २५ तत्वों की शक्तियाँ संस्कृतज्ञ को प्राप्त होने लगती है। 


सांख्य दर्शन के २५ तत्व निम्नानुसार हैं।-


आत्मा (पुरुष)


(अंत:करण ४ ) मन बुद्धि चित्त अहंकार


(ज्ञानेन्द्रियाँ ५ ) नासिका जिह्वा नेत्र त्वचा कर्ण


(कर्मेन्द्रियाँ ५) पाद हस्त उपस्थ पायु वाक्


(तन्मात्रायें ५ ) गन्ध रस रूप स्पर्श शब्द


( महाभूत ५ ) पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश


३- *द्विवचन* :-


संस्कृत भाषा की तीसरी विशेषता है द्विवचन। सभी भाषाओं में एक वचन और बहु वचन होते हैं जबकि संस्कृत में द्विवचन अतिरिक्त होता है। इस द्विवचन पर ध्यान दें तो पायेंगे कि यह द्विवचन बहुत ही उपयोगी और लाभप्रद है।


जैसे :- राम शब्द के द्विवचन में निम्न रूप बनते हैं:- रामौ , रामाभ्यां और रामयो:।


 इन तीनों शब्दों के उच्चारण करने से *योग के क्रमश: मूलबन्ध ,उड्डियान बन्ध और जालन्धर बन्ध लगते हैं, जो योग की बहुत ही महत्वपूर्ण क्रियायें हैं*।


४ *सन्धि* :-


संस्कृत भाषा की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता है सन्धि। ये संस्कृत में जब दो शब्द पास में आते हैं तो वहाँ सन्धि होने से स्वरूप और उच्चारण बदल जाता है। उस बदले हुए उच्चारण में जिह्वा आदि को कुछ विशेष प्रयत्न करना पड़ता है।ऐंसे सभी प्रयत्न एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति के प्रयोग हैं।


''इति अहं जानामि" इस वाक्य को चार प्रकार से बोला जा सकता है, और हर प्रकार के उच्चारण में वाक् इन्द्रिय को विशेष प्रयत्न करना होता है।


यथा:- 

१ इत्यहं जानामि।

२ अहमिति जानामि।

३ जानाम्यहमिति ।

४ जानामीत्यहम्।


इन सभी उच्चारणों में विशेष आभ्यंतर प्रयत्न होने से एक्यूप्रेशर चिकित्सा पद्धति का सीधा प्रयोग अनायास ही हो जाता है। जिसके फल स्वरूप मन बुद्धि सहित समस्त शरीर पूर्ण स्वस्थ एवं नीरोग हो जाता है।


इन समस्त तथ्यों से सिद्ध होता है कि संस्कृत भाषा केवल विचारों के आदान-प्रदान की भाषा ही नहीं ,अपितु *मनुष्य के सम्पूर्ण विकास की कुंजी है*।


 यह वह भाषा है, जिसके उच्चारण करने मात्र से व्यक्ति का कल्याण हो सकता है।     .


 *इसीलिए इसे देवभाषा और अमृतवाणी कहते हैं*।🙏🙏

••• 3 •••

एतदीयः - इसका,

 तदीयः - उसका, 

यदीयः - जिसका,

 परकीयः (अन्यदीयः) - दूसरे का,

 आत्मीयः (स्वकीयः, स्वीयः) - अपना।


महत् - महान्, 

यावत् - जितना

 तावत् - उतना,

 कियत् - कितना, 

एतावत् (इयत्) - इतना।


तत्र - वहाँ, 

अत्र - यहाँ,

 कुत्र - कहाँ,

 यत्र - जहाँ, 

कुत्रापि - कहीं भी, 

अन्यत्र - दूसरे स्थान पर,

 सर्वत्र - सब स्थानों पर,

उभयत्र - दोनों स्थानों पर,

 अत्रैव - यहीं पर

तत्रैव - वहीं पर,

यत्र-कुत्रापि - जहाँ कहीं भी,


इतः - यहाँ से,

 ततः - वहाँ से,

 कुतः - कहाँ से,

 कुतश्चित् - कहीं से, 

यतः - जहाँ से,

 इतस्ततः - इधर-उधर, 

सर्वतः - सब ओर से,

 उभयतः - दोनों ओर से,


उपरि - ऊपर, 

अधः - नीचे,

अग्रे, (पुरः, पुरस्तात्) - आगे, 

पश्चात् - पीछे, 

बहिः - बाहर,

 अन्तः - भीतर

उपरि-अधः - ऊपर-नीचे,


इदानीम् (सम्प्रति, अधुना) - अब / इस समय,

 तदा / तदानीम् - तब / उस समय, 

कदा - कब

यदा - जब,

 सदा (सर्वदा) - हमेशा, 

एकदा - एक समय

कदाचित् - कभी,

 क्व - कब

 क्वापि - कभी भी,

सद्यः - तत्काल (अतिशीघ्र)

 पुनः - फिर

 अद्य - आज

 अद्यैव - आज ही, 

अद्यापि - आज भी,


श्वः - आने वाला कल

 ह्यः - बीता हुआ कल,

 परश्वः - आने वाला परसों

 परह्य: - बीता हुआ परसों

 प्रपरश्वः - आने वाला नरसों

प्रपरह्य: - बीता हुआ नरसों,


शीघ्रम् - जल्दी, 

शनैः शनैः - धीरे-धीरे,

 पुनः पुनः - बार-बार,

 युगपत् - एक ही समय में, 

सकृत् - एक बार

असकृत् - अनेक बार, 

अनन्तरम् - इसके बाद, 

कियत् कालम् - कब तक, 

एतावत् कालम् - अब तक,

 तावत् कालम् - तब तक,

 यावत् कालम् - जब तक, 

अद्यावधि - आज तक,


कथम् - कैसे / किस प्रकार

 इत्थम् - ऐसे / इस प्रकार,

यथा - जैसे,

 तथा - वैसे / उस प्रकार,

सर्वथा - सब तरह से, 

अन्यथा - नहीं तो / अन्य प्रकार से,

 कथञ्चित्, कथमपि - किसी भी प्रकार से,

 यथा यथा - जैसे-जैसे,

 तथा-तथा - वैसे-वैसे, 

यथा-कथञ्चित् - जिस किसी प्रकार से,

 तथैव - उसी प्रकार,

बहुधा / प्रायः - अक्सर।


स्वयम् - खुद,

 वस्तुतः - असल में,

कदाचित् (सम्भवतः) - शायद,

सम्यक् - अच्छी तरह, 

सहसा (अकस्मात्) - अचानक, 

वृथा - व्यर्थ, 

समक्षम् (प्रत्यक्षम्) - सामने,

मन्दम् - धीरे,

च - और,

अपि - भी,

वा / अथवा - या, 

किम् - क्या, 

प्रत्युत (अपितु) - बल्कि,

यतः - चूँकि,

यत् - कि, 

यदि - अगर, 

तथापि - तो भी / फिर भी


आइए, आज व्हाट्सएप्प के इमोजी की सहायता से दुनिया की सबसे वैज्ञानिक, सबसे प्रतिष्ठित, सबसे अधिक उपयोगी और निस्संदेह सर्वश्रेष्ठ  भाषा *संस्कृत* देवभाषा सीखते हैं..

••• 4 •••

😀 - हसति 

😬 - निन्दति 

😭 - रोदिति 

😇 - भ्रमति 

🤔 - चिन्तयति 

😡 - कुप्यति 

😴 - स्वपिति 

😩 - क्षमां याचते / जृम्भते 

😳 - विस्मयो भवति / निर्निमेषं पश्यति 

😌 - ध्यायति 

👁 - पश्यति 

🗣 - वदति 

✍ - लिखति 

🙏� - प्रणमति 

👉 - निर्दिशति 

🙌 - आशिषति 

�👃 - जिघ्रति 

🚶🏻- गच्छति 

🏃🏻- धावति 

💃🏻 - नृत्यति 


✈️ विमानम् ।

🎁 उपायनम् ।

🚘 यानम् ।

💺 आसन्दः / आसनम् ।

⛵ नौका ।

🗻 पर्वत:।

🚊 रेलयानम् ।

🚌 लोकयानम् ।

🚲 द्विचक्रिका ।

🇮🇳 ध्वज:।

🐰 शशक:।

🐯 व्याघ्रः।

🐵 वानर:।

🐴 अश्व:।

🐑 मेष:।

🐘 गज:।

🐢 कच्छप:।

🐜 पिपीलिका ।

🐠 मत्स्य:।

🐄 धेनु: ।

🐃 महिषी  ।

🐐 अजा ।

🐓 कुक्कुट:।

🐕 श्वा / कुक्कुरः / सारमेयः (श्वा श्वानौ श्वानः) ।

🐁 मूषक:।

🐊 मकर:।

🐪 उष्ट्रः।

🌸 पुष्पम् ।

🍃 पर्णे (द्वि.व)।

🌳 वृक्ष:।

🌞 सूर्य:।

🌛 चन्द्र:।

⭐ तारक: / नक्षत्रम् ।

☔ छत्रम् ।

👦 बालक:।

👧 बालिका ।

👂 कर्ण:।

👀 नेत्रे (द्वि.व)।

👃नासिका ।

👅 जिह्वा ।

👄 औष्ठौ (द्वि.व) ।

👋 चपेटिका ।

💪 बाहुः ।

🙏 नमस्कारः।

👟 पादत्राणम् (पादरक्षक:) ।

👔 युतकम् ।

💼 स्यूत:।

👖 ऊरुकम् ।

👓 उपनेत्रम् ।

💎 वज्रम् (रत्नम् ) ।

💿 सान्द्रमुद्रिका ।

🔔 घण्टा ।

🔓 ताल:।

🔑 कुञ्चिका ।

⌚ घटी।

💡 विद्युद्दीप:।

🔦 करदीप:।

🔋 विद्युत्कोष:।

🔪 छूरिका ।

✏ अङ्कनी ।

📖 पुस्तकम् ।

🏀 कन्दुकम् ।

🍷 चषक:।

🍴 चमसौ (द्वि.व)।

📷 चित्रग्राहकम् ।

💻 सड़्गणकम् ।

📱जड़्गमदूरवाणी ।

☎ स्थिरदूरवाणी ।

📢 ध्वनिवर्धकम् ।

⏳समयसूचकम् ।

⌚ हस्तघटी ।

🚿 जलसेचकम् ।

🚪द्वारम् ।

🔫 भुशुण्डिका ।(बु?) ।

🔩आणिः ।

🔨ताडकम् ।

💊 गुलिका/औषधम् ।

💰 धनम् ।

✉ पत्रम् ।

📬 पत्रपेटिका ।

📃 कर्गजम्/कागदम् ।

📊 सूचिपत्रम् ।

📅 दिनदर्शिका ।

✂ कर्त्तरी ।

📚 पुस्तकाणि ।

🎨 वर्णाः ।

🔭 दूरदर्शकम् ।

🔬 सूक्ष्मदर्शकम् ।

📰 पत्रिका ।

🎼🎶 सड़्गीतम् ।

🏆 पारितोषकम् ।

⚽ पादकन्दुकम् ।

☕ चायम् ।

🍵पनीयम्/सूपः ।

🍪 रोटिका ।

🍧 पयोहिमः ।

🍯 मधु ।

🍎 सेवफलम् ।

🍉कलिड़्ग फलम् ।

🍊नारड़्ग फलम् ।

🍋 आम्र फलम् ।

🍇 द्राक्षाफलाणि ।

🍌कदली फलम् ।

🍅 रक्तफलम् ।

🌋 ज्वालामुखी ।

🐭 मूषकः ।

🐴 अश्वः ।

🐺 गर्दभः ।

🐷 वराहः ।

🐗 वनवराहः ।

🐝 मधुकरः/षट्पदः ।

🐁मूषिकः ।

🐘 गजः ।

🐑 अविः ।

🐒वानरः/मर्कटः ।

🐍 सर्पः ।

🐠 मीनः ।

🐈 बिडालः/मार्जारः/लः ।

🐄 गौमाता ।

🐊 मकरः ।

🐪 उष्ट्रः ।

🌹 पाटलम् ।

🌺 जपाकुसुमम् ।

🍁 पर्णम् ।

🌞 सूर्यः ।

🌝 चन्द्रः ।

🌜अर्धचन्द्रः ।

⭐ नक्षत्रम् ।

☁ मेघः ।

⛄ क्रीडनकम् ।

🏠 गृहम् ।

🏫 भवनम् ।

🌅 सूर्योदयः ।

🌄 सूर्यास्तः ।

🌉 सेतुः ।

🚣 उडुपः (small boat)

🚢 नौका ।

✈️ गगनयानम्/विमानम् ।

🚚 भारवाहनम् ।

🇮🇳 भारतध्वजः ।

1⃣ एकम् ।

2⃣ द्वे ।

3⃣ त्रीणि ।

4⃣ चत्वारि ।

5⃣ पञ्च ।

6⃣ षट् ।

7⃣ सप्त ।

8⃣ अष्ट/अष्टौ ।

9⃣ नव ।

🔟 दश ।

2⃣0⃣ विंशतिः ।

3⃣0⃣ त्रिंशत् ।

4⃣0⃣ चत्त्वारिंशत् ।

5⃣0⃣ पञ्चिशत् ।

6⃣0⃣ षष्टिः ।

7⃣0⃣ सप्ततिः ।

8⃣0⃣ अशीतिः ।

9⃣0⃣ नवतिः ।

1⃣0⃣0⃣ शतम्।

⬅ वामतः ।

➡ दक्षिणतः ।

⬆ उपरि ।

⬇ अधः ।

🎦 चलच्चित्र ग्राहकम् ।

🚰 नल्लिका ।

🚾 जलशीतकम् ।

🛄 यानपेटिका ।

📶 तरड़्ग सूचकम् ( तरड़्गाः)

+ सड़्कलनम् ।

- व्यवकलनम् ।

× गुणाकारः ।

÷ भागाकारः ।

% प्रतिशतम् ।

@ अत्र (विलासम्)।

⬜ श्वेतः ।

🔵 नीलः ।

🔴 रक्तः ।

नवीन:

⬛ कृष्णः

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