વસંત પંચમી વિષે
1.
*बसंतपंचमी की कुटुंब परिवार की ओर से आपको एवम् आपके परिवार को इस पावन दिवस की शुभकामनाएं!!!!!!*
*पुनि बंदउँ सारद सुरसरिता। जुगल पुनीत मनोहर चरिता॥*
*मज्जन पान पाप हर एका। कहत सुनत एक हर अबिबेका॥*
भावार्थ:-फिर मैं सरस्वती और देवनदी गंगाजी की वंदना करता हूँ। दोनों पवित्र और मनोहर चरित्र वाली हैं। एक (गंगाजी) स्नान करने और जल पीने से पापों को हरती है और दूसरी (सरस्वतीजी) गुण और यश कहने और सुनने से अज्ञान का नाश कर देती है॥
वसंतपंचमी या श्रीपंचमी एक हिन्दू त्योहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। यह पूजा पूर्वी भारत, पश्चिमोत्तर बांग्लादेश, नेपाल और कई राष्ट्रों में बड़े उल्लास से मनायी जाती है। इस दिन स्त्रियाँ पीले वस्त्र धारण करती हैं।
प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह मौसमों में बाँटा जाता था उनमें वसंत लोगों का सबसे मनचाहा मौसम था। जब फूलों पर बहार आ जाती, खेतों में सरसों का सोना चमकने लगता, जौ और गेहूँ की बालियाँ खिलने लगतीं, आमों के पेड़ों पर बौर आ जाता और हर तरफ़ रंग-बिरंगी तितलियाँ मँडराने लगतीं।
भर भर भंवरे भंवराने लगते। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती, यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है।
*बसन्त पंचमी कथा!!!!!*
सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान विष्णु की आज्ञा से ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे। उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। विष्णु से अनुमति लेकर ब्रह्मा ने अपने कमण्डल से जल छिड़का, पृथ्वी पर जलकण बिखरते ही उसमें कंपन होने लगा।
इसके बाद वृक्षों के बीच से एक अद्भुत शक्ति का प्राकट्य हुआ। यह प्राकट्य एक चतुर्भुजी सुंदर स्त्री का था जिसके एक हाथ में वीणा तथा दूसरा हाथ वर मुद्रा में था। अन्य दोनों हाथों में पुस्तक एवं माला थी। ब्रह्मा ने देवी से वीणा बजाने का अनुरोध किया। जैसे ही देवी ने वीणा का मधुरनाद किया, संसार के समस्त जीव-जन्तुओं को वाणी प्राप्त हो गई। जलधारा में कोलाहल व्याप्त हो गया।
पवन चलने से सरसराहट होने लगी। तब ब्रह्मा ने उस देवी को वाणी की देवी सरस्वती कहा। सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। ये विद्या और बुद्धि प्रदाता हैं। संगीत की उत्पत्ति करने के कारण ये संगीत की देवी भी हैं। बसन्त पंचमी के दिन को इनके जन्मोत्सव के रूप में भी मनाते हैं। ऋग्वेद में भगवती सरस्वती का वर्णन करते हुए कहा गया है-
*प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु।*
अर्थात ये परम चेतना हैं। सरस्वती के रूप में ये हमारी बुद्धि, प्रज्ञा तथा मनोवृत्तियों की संरक्षिका हैं।
हममें जो आचार और मेधा है उसका आधार भगवती सरस्वती ही हैं। इनकी समृद्धि और स्वरूप का वैभव अद्भुत है। पुराणों के अनुसार श्रीकृष्ण ने सरस्वती से ख़ुश होकर उन्हें वरदान दिया था कि वसंत पंचमी के दिन तुम्हारी भी आराधना की जाएगी और यूँ भारत के कई हिस्सों में वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती की भी पूजा होने लगी जो कि आज तक जारी है। पतंगबाज़ी का वसंत से कोई सीधा संबंध नहीं है। लेकिन पतंग उड़ाने का रिवाज़ हज़ारों साल पहले चीन में शुरू हुआ और फिर कोरिया और जापान के रास्ते होता हुआ भारत पहुँचा।
वसंत ऋतु आते ही प्रकृति का कण-कण खिल उठता है। मानव तो क्या पशु-पक्षी तक उल्लास से भर जाते हैं। हर दिन नयी उमंग से सूर्योदय होता है और नयी चेतना प्रदान कर अगले दिन फिर आने का आश्वासन देकर चला जाता है।
यों तो माघ का यह पूरा मास ही उत्साह देने वाला है, पर वसंत पंचमी (माघ शुक्ल 5) का पर्व भारतीय जनजीवन को अनेक तरह से प्रभावित करता है। प्राचीनकाल से इसे ज्ञान और कला की देवी मां सरस्वती का जन्मदिवस माना जाता है। जो शिक्षाविद भारत और भारतीयता से प्रेम करते हैं, वे इस दिन मां शारदे की पूजा कर उनसे और अधिक ज्ञानवान होने की प्रार्थना करते हैं। कलाकारों का तो कहना ही क्या?
जो महत्व सैनिकों के लिए अपने शस्त्रों और विजयादशमी का है, जो विद्वानों के लिए अपनी पुस्तकों और व्यास पूर्णिमा का है, जो व्यापारियों के लिए अपने तराजू, बाट, बहीखातों और दीपावली का है, वही महत्व कलाकारों के लिए वसंत पंचमी का है। चाहे वे कवि हों या लेखक, गायक हों या वादक, नाटककार हों या नृत्यकार, सब दिन का प्रारम्भ अपने उपकरणों की पूजा और मां सरस्वती की वंदना से करते हैं।
*पौराणिक महत्व !!!!!*
इसके साथ ही यह पर्व हमें अतीत की अनेक प्रेरक घटनाओं की भी याद दिलाता है। सर्वप्रथम तो यह हमें त्रेता युग से जोड़ती
है। रावण द्वारा सीता के हरण के बाद श्रीराम उसकी खोज में दक्षिण की ओर बढ़े। इसमें जिन स्थानों पर वे गये, उनमें दण्डकारण्य भी था। यहीं शबरी नामक भीलनी रहती थी। जब राम उसकी कुटिया में पधारे, तो वह सुध-बुध खो बैठी और चख-चखकर मीठे बेर राम जी को खिलाने लगी। प्रेम में पगे जूठे बेरों वाली इस घटना को रामकथा के सभी गायकों ने अपने-अपने ढंग से प्रस्तुत किया।
दंडकारण्य का वह क्षेत्र इन दिनों गुजरात और मध्य प्रदेश में फैला है। गुजरात के डांग जिले में वह स्थान है जहां शबरी मां का आश्रम था। वसंत पंचमी के दिन ही रामचंद्र जी वहां आये थे। उस क्षेत्र के वनवासी आज भी एक शिला को पूजते हैं, जिसके बारे में उनकी श्रध्दा है कि श्रीराम आकर यहीं बैठे थे। वहां शबरी माता का मंदिर भी है
*जय मां सरस्वती*
2.
આજે છે મહા સુદ પાંચમ
વસંત પંચમી એટલે સરસ્વતી આરાધના દિવસ .
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એટલે કે વસંતપંચમી. સરસ્વતી દેવીનો જન્મદિન
વસંત એટલે અંકુરણનો સમય પછી એ પ્રેમ હોય, પ્રકૃતિ હોય કે પછી માણસ.
જેમા પશ્ચિમના દેશોમાં અને હવે તો અહી પણ વેલેન્ટાઈન ડે ઉજવવામાં આવે છે
પણ જો આપણા ભારતમાં જોવા જઈએ તો પ્રેમના સૌથી મહત્વના દિવસ તરીકે કદાચ વસંતપંચમીની જગ્યા કોઈ ન લઈ શકે.
આમ જોઈએ તો વર્ષોથી શ્રીકૃષ્ણ અને તેના પણ પહેલાના સમયથી જો આપણી સંસ્કૃતિમાં ઈન્ડિયન વેલેન્ટાઈન ડે વસંતપંચમી જ છે.
અને તેથી જ તો આ દિવસને વણજોયું મુહુર્ત ગણવામાં આવે છે.વસંત તો તમામ ઋતુઓનો રાજા છે.
પ્રકૃતિ પણ આ સમયગાળામાં એક નવોઢાની જેમ શણગાર સજીને તૈયાર થાય છે.વસંત જ તો પ્રકૃતિનું યૌવન છે.
અને વૃક્ષોની ડાળે ખીલેલી લીલી કુંપળોને જોઈને દરેકના મનમાં પ્રેમના અંકુરણ પણ જાણે–અજાણે થાય છે
અને હા જેવી રીતે નવરાત્રિમાં આદ્યશક્તિની અને દિવાળીમાં દેવી લક્ષ્મીની પૂજા થાય છે
તેમ વસંતપંચમીના દિવસે વિદ્યાની દેવી સરસ્વતી દેવીની પૂજા–અર્ચના થાય છે.
એક માન્યતા મુજબ આજે સરસ્વતી દેવીનો જન્મદિન મનાતો હોવાથી આજના દિનને સરસ્વતી દિન પણ કહે છે.
આ દિવસે પીળા રંગનું ખાસ મહત્વ ગણવામાં આવે છે.
તો ચાલો આજે મા શારદાનું સ્મરણ કરી લઈએ.
या देवी सर्वभूतेषु,विद्यारुपेण संस्थिता I
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः II
श्रीसरस्वती स्तुति..
या कुन्देन्दु- तुषारहार- धवला या शुभ्र- वस्त्रावृता
या वीणावरदण्डमन्डितकरा या श्वेतपद्मासना |
या ब्रह्माच्युत- शंकर- प्रभृतिभिर्देवैः सदा पूजिता
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा || १||
दोर्भिर्युक्ता चतुर्भिः स्फटिकमणिमयीमक्षमालां दधाना
हस्तेनैकेन पद्मं सितमपि च शुकं पुस्तकं चापरेण |
भासा कुन्देन्दु- शंखस्फटिकमणिनिभा भासमानाऽसमाना
सा मे वाग्देवतेयं निवसतु वदने सर्वदा सुप्रसन्ना || २||
आशासु राशी भवदंगवल्लि
भासैव दासीकृत- दुग्धसिन्धुम् |
मन्दस्मितैर्निन्दित- शारदेन्दुं
वन्देऽरविन्दासन- सुन्दरि त्वाम् || ३||
शारदा शारदाम्बोजवदना वदनाम्बुजे |
सर्वदा सर्वदास्माकं सन्निधिं सन्निधिं क्रियात् || ४||
सरस्वतीं च तां नौमि वागधिष्ठातृ- देवताम् |
देवत्वं प्रतिपद्यन्ते यदनुग्रहतो जनाः || ५||
पातु नो निकषग्रावा मतिहेम्नः सरस्वती |
प्राज्ञेतरपरिच्छेदं वचसैव करोति या || ६||
शुद्धां ब्रह्मविचारसारपरमा- माद्यां जगद्व्यापिनीं
वीणापुस्तकधारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम् |
हस्ते स्पाटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थितां
वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम् || ७||
वीणाधरे विपुलमंगलदानशीले
भक्तार्तिनाशिनि विरिंचिहरीशवन्द्ये |
कीर्तिप्रदेऽखिलमनोरथदे महार्हे
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम् || ८||
श्वेताब्जपूर्ण- विमलासन- संस्थिते हे
श्वेताम्बरावृतमनोहरमंजुगात्रे |
उद्यन्मनोज्ञ- सितपंकजमंजुलास्ये
विद्याप्रदायिनि सरस्वति नौमि नित्यम् || ९||
मातस्त्वदीय- पदपंकज- भक्तियुक्ता
ये त्वां भजन्ति निखिलानपरान्विहाय |
ते निर्जरत्वमिह यान्ति कलेवरेण
भूवह्नि- वायु- गगनाम्बु- विनिर्मितेन || १०||
मोहान्धकार- भरिते हृदये मदीये
मातः सदैव कुरु वासमुदारभावे |
स्वीयाखिलावयव- निर्मलसुप्रभाभिः
शीघ्रं विनाशय मनोगतमन्धकारम् || ११||
ब्रह्मा जगत् सृजति पालयतीन्दिरेशः
शम्भुर्विनाशयति देवि तव प्रभावैः |
न स्यात्कृपा यदि तव प्रकटप्रभावे
न स्युः कथंचिदपि ते निजकार्यदक्षाः || १२||
लक्ष्मिर्मेधा धरा पुष्टिर्गौरी तृष्टिः प्रभा धृतिः |
एताभिः पाहि तनुभिरष्टभिर्मां सरस्वती || १३||
सरसवत्यै नमो नित्यं भद्रकाल्यै नमो नमः
वेद- वेदान्त- वेदांग- विद्यास्थानेभ्य एव च || १४||
सरस्वति महाभागे विद्ये कमललोचने |
विद्यारूपे विशालाक्षि विद्यां देहि नमोस्तु ते || १५||
यदक्षर- पदभ्रष्टं मात्राहीनं च यद्भवेत् |
तत्सर्वं क्षम्यतां देवि प्रसीद परमेश्वरि || १६||
|| इति श्रीसरस्वती स्तोत्रं संपूर्णं||
આ ડાળ ડાળ જાણે કે રસ્તા વસંતના,
ફૂલોએ બીજું કૈં નથી, પગલાં વસંતના.
મલયાનિલોની પીંછી ને રંગો ફૂલો ના લૈ,
દોરી રહ્યું છે કોણ આ નકશા વસંતના !
આ એક તારા અંગે ને બીજો ચમન મહીં,
જાણે કે બે પડી ગયા ફાંટા વસંતના !
મહેંકી રહી છે મંજરી એક એક આંસુમાં,
મ્હોર્યા છે આજ આંખમાં આંબા વસંતના !
ઊઠી રહ્યા છે યાદના અબીલ ને ગુલાલ,
હૈયે થયા છે આજ તો છાંટા વસંતના !
ફાંટુ ભરીને સોનું સૂરજનું ભરો હવે,પાછા ફરી ન આવશે તડકા વસંતના !
વસંતના વધામણા.....
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